11 अक्तूबर 2011

प्रेम शांति का द्वार बने

कुछ अपनी कुछ औरों की| बातें कलियों-भँवरों की||
तन आकुल औ व्याकुल मन| राम कहानी सा जीवन|१|

इश्क मुहब्बत की बातें| कम पड़तीं जिन को रातें||
दिल का मर्ज़ अनोखा है| फिर भी लगता चोखा है|२|

प्यार बिना सूना जीवन| स्नेह सिक्त जीवन बंधन|
प्रेम तीर्थ की पूजा है| काम न ऐसा दूजा है|३|

प्रेम जीव की चाहत है| प्रेम सभी की हसरत है|
प्रेम पक्ष ही शास्वत है| विश्व, प्रेम की मूरत है|४| 

जिसका व्याप सघन इतना| जिसका अर्थ महान घना|
मानवता की जो रचना| वो फिर क्यूँ जंजाल बना|५|

प्रेम तत्व जब बढ़ता है| साथ दम्भ भी चढ़ता है|
नर अपनों से लड़ता है| यही दम्भ दुःख गढ़ता है|६|

बँटवा दो लिख कर पर्चे| ख़त्म होंय दम्भी चर्चे|
प्रेम प्रेम बस प्रेम रहे| दिल में ममता क्षेम रहे|७|

हर मनुष्य प्रेमातुर हो| कहीं न कोइ भयातुर हो|
प्रेम भाल का चन्दन हो| प्रेम दिलों की धड़कन हो|८|

जीवन का यह सार बने| हर शै का आधार बने|
प्रेम बात व्यवहार बने| प्रेम शांति का द्वार बने| |९| 

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मानव छंद 

अनजाने में लिखे गए इस छंद को जब किसी नाम से जोड़ने का प्रयत्न किया तो यह 14 मात्रा वाले मानव [साधारण] छंद के अधिक निकट लगा। यूं तो मानव जाति के छंदों के भी अनेक भेद होते हैं, परंतु इस साधारण स्वरूप को मानव छंद के रूप में ही स्वीकार कर लिया है मैंने तो। आ. नारायण दास जी द्वारा विरचित पुस्तक 'हिन्दी छंदोलक्षण' में भी कुछ कुछ ऐसा ही इशारा किया गया है। 

 चार चरणों वाला मात्रिक छंद 
प्रत्येक चरण में 14 मात्रा 
अंत में एक या दो गुरु वर्ण / अक्षर का विधान 
परंतु अंत में दो लघु भी स्वीकार्य देखे गए हैं

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