28 फ़रवरी 2014

देखते-देखते अफ़सानों में ढल जाते हैं - नवीन

देखते-देखते अफ़सानों में ढल जाते हैं
दिल की बातों में जो आते हैं, बदल जाते हैं

उस के सीने में कहीं दिल की जगह सिल तो नहीं
चूँकि बच्चे तो बहुत जल्द बहल जाते हैं

ज़िन्दगी चैन से जीने ही नहीं देती है
दिल सँभलता है तो अरमान मचल जाते हैं

अश्क़ आँखों से छलकते नहीं तो क्या करते
दिल सुलगता है तो एहसास पिघल जाते हैं

जिस्म की क़ैद से हम छूटें तो छूटें कैसे
दिल की दहलीज़ पे आते ही फिसल जाते हैं 


बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन

2122 1122 1122 22

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