1 फ़रवरी 2014

खोया-खोया चाँद भी - फणीन्द्र कुमार ‘भगत’

खोया-खोया चाँद भी, गया रूठकर आज |
तारा टूटे तार का, कहाँ बजाता साज ||
कहाँ बजाता साज, घने घुप अँधियारे में,
या खुद रोता आज, चाँद के चौबारे में,
जागा सारी रात, नहीं वह तारा सोया,
गया रूठ जब प्यार, चाँद सा खोया-खोया ||


~ फणीन्द्र कुमार ‘भगत’

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें